योग हमारे मन, मस्तिष्क और विचारों को ऊँचा उठाता है:त्रिवेन्द्र सिंह रावत

ऋषिकेश/कोटद्वार, 20 नवम्बर। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि योगरोग भगाने की विधा है और हमारे ऋषियों की तपस्या का परिणाम है। आज पूरे दुनिया में योग शिक्षकों की मांग है परन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी ही धरोहर और विधा पर जब तक विदेशी संस्कृति स्वीकार नहीं करती तब तक हम स्वयं ही उस पर विश्वास नहीं करते। उन्होने कहा कि हमें अपनी योग रूपी विधा पर विश्वास करना होगा इससे हम दुनिया को जो दे रहे है उससे और अधिक दें पायेगेे। सब को सुख और निरोग करने का कार्य केवल भारत देश ही कर सकता है। योग धर्मपूजा और सम्प्रदाय से अलग विषय है। योग परमात्मा से जुड़ने के सेतु का कार्य करता है। योग हमारे मनमस्तिष्क और विचारों को ऊँचा उठाता है। विश्व में पहली बार आयोजित मुस्लिम योग शिविर का आयोजन डाॅ योगीराज वी पी जयंत जी के मार्गदर्शन में सम्पन्न हो रहा है। मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि कण्वाश्रम में स्वस्थ्य को जोड़कर जिस प्रकार मुस्लिम योग शिविर का आयोजन किया है वास्तव में अद्भुत शुरूआत है। आज भले ही यहां पर अत्यधिक संख्या में मुस्लिम भाई-बहन न हो लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि आगामी दिनों में यह और सफलता के शिखर को पहुंचेगा।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज हम इस धरती पर है जहां भरत का जन्म हुआ था। यहां पर शकुन्तला और राजा दुष्यंत के पुत्र  भरत ने जन्म लियाएक ऋषि संस्कृति ने जन्म लिया जिसके नाम पर हमारे देश का भारत नाम पड़ा। योग और ध्यान का यह कार्यक्रम एक बहुत खूबसुरत शुरूआत है। नेकी के रास्ते पर चलना ही सबसे बड़ा ध्यान है। हम नेकी पर चले और बदी से टले। नेकी करने के लिये कोई पहलवान होने की जरूरत नहीं है नेकी करने के लिये तो बस इन्सान होने की जरूरत हैआईये इन्सान बने। जिसके पास बल है वह बलवानजिसके पास धन है वह धनवानजिसके पास शक्ति है वह शक्तिवानजिसके पास इन्सानियत वह इन्सानवैसे ही जिसके पास ध्यान है वही ध्यानवान है। नेकी करने के लिये इन्सान होना जरूरी है। यही है इबादत यही दीन-ये-दुनियाकरे प्रेम दुनिया में इंसा से इंसाकरें ध्यान दुनिया में इंसा से इंसा। हम सभी एक दूसरे का ध्यान रखे।ध्यान हमें स्वयं से जोड़ता है। जो स्वयं से जुड़ता है वह सब से जुड़ जाता है। स्वयं से जुड़ने का अर्थ है भीतर से जुड़ना अतः आईये भीतर से जुड़े और बेहतर बने। आज ऐसे ध्यान की आवश्यकता है जो दिलों को विशाल बनायेंजो दीवारों को तोड़ेदूरियों को मिटा दे और जो दरारों को भरते हुये दिलों को जोड़े। सर्वे भवन्तु सुखिनःआनो भद्रा जैसे वेद मंत्र नफरत की दीवारों को तोड़ते है और दरारों को प्यार से भरते है। ये मंत्र सभी के लिये और सब के मंत्र हैसृष्टी के दिलों को बदलने के लिये इन मंत्रों से बेहतर कुछ नहीं है। उन्होने कहा कि आज ऐसे ध्यान की आवश्यकता है जहां पर ज्योत से ज्योत जलती रहे और प्रेम की गंगा हर दिल में बहती रहे क्योकि नफरत से किसी का नफा नहीं होता और मोहब्बत से किसी का नुकसान नहीं होता। आज हमें ऐसे धर्म और ध्यान की आवश्यकता है जो संयम पैदा करे और संगम पैदा करे। संयम और संगम ही देश का संविधान भी है और समाधान भी है। उन्होने कहा कि जब भी देश में कुछ घटे तो संयम से काम ले और ध्यान रखे कि हमारा संगम भी बना रहे तभी भारत जिंदा रहेगा और भारतीय संस्कृति जिंदा रहेगी। हमें ऐसा वातावरण बनाये रखना है कि इस देश की खुशबू बनी रहे किसी की नजर न लगेइस वतन को चमन बनाये और इसमें हमेशा अमन बना रहे यह हम सभी की जिम्मेदारी है। भारत प्रेममोहब्बत और संरकारों की धरती है कण्व आश्रम में होने वाला भरत वीर स्मारक और मुस्लिम योग शिविर दोनों ही खूबसुरत शुरूआत है।इस अवसर पर परमार्थ निकेतन में गुरूकुल के ऋषिकुमार और मदरसों के छात्रों ने एक साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया तथा ध्वजारोहण किया था उस समय आॅल इण्डिया इमान संगठन के अध्यक्ष मौलाना उमर इलियासी की उपस्थिति में हुआ था। स्वतंत्रता दिवस पर वहां केवल तिरंगा ही नहीं फहराया गया था बल्कि एक प्रेम का प्रतीक लहराया गया था आज मैं कण्वाश्रम के ऐसा ही दृश्य देख रहा हूँ। हरियाली अमन यात्रा के माध्यम से स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जमीयत उलेमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना हजरत महमूद मदनी ने मिलकर पूरे देश में अमन और एकता की एक लहर पैदा की थी वह अपने आप में काबिले तारीफ है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सुझाव दिया कि कोटद्वारकण्वनगरी कोटद्वार बने और कलाल घाटी कण्वघाटी बने तो हमारी ऋषि परम्परा जिंदा रहेगी। उन्होने कहा कि परमार्थ निकेतन में पूरा वर्ष और विशेष तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के अवसर पर विश्व के अनेक देशों से पर्यटक आते है उनको यहां लाकर हम कण्वनगरी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलवा सकते है। इस सुझाव को मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया इस हेतु स्वामी ने उन्हे धन्यवाद दिया।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस अवसर पर उपस्थित सभी को पर्यावरण एवं जल संरक्षण का संकल्प कराया।